जब ऋषि भृगु ने विष्णु भगवान के सीने पर मार दी थी लात
कलयुग की शुरुआत में जब भगवान वरहा वैकुंठ चले गए थे। लेकिन ब्रह्मा धरती पर विष्णु भगवान को चाहते थे। जिसके लिए नारद मुनी को कोई युक्ति सोचने के लिए कहा गया। नारद मुनी ने गंगा के तट पर यज्ञ की तैयारी में जुटे जब बेहतर ब्रह्मांड की खातिर ऋषि मुनियों ने एक यज्ञ शुरु किया था। लेकिन सवाल ये था कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में उस यज्ञ का पुरोहित किसे बनाया जाए। सभी ऋषि मुनियों ने ये जिम्मेदारी भृगु ऋषि को सौंपी क्योंकि वही देवताओं की परीक्षा देने का साहस कर सकते थे।
भृगु ऋषि भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे। लेकिन भगवान ब्रह्मा वीणा की धुन में लीन थे। उन्होंने भृगु ऋषि की तरफ ध्यान ही नहीं दिया। भृगु ऋषि की अगली मंजिल थी महादेव का दरबार, लेकिन उस वक्त भगवान शंकर भी मां पार्वती से बातचीत में खोए हुए थे और उनकी नजर भी भृगु ऋषि पर नहीं पड़ी।
ऋषि भृगु फिर नाराज होकर वहां से भी चले गए। अब बारी थी भगवान विष्णु की, जो उस वक्त आराम कर रहे थे। भृगु ऋषि ने वैकुंठ धाम में भगवान विष्णु को कई आवाजें दीं। लेकिन भगवान ने कोई जवाब नहीं दिया। गुस्से में आकर भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मार दी। इसके बाद भगवान विष्णु ने भृगु ऋषि को गुस्से में आग बबुला देखा तो उनका पैर पकड़ लिया और मालिश करते हुए पूछा कि कही आपको चोट तो नहीं लगी। यह देखकर भृगु ऋषि को अपना उत्तर मिल गया और उन्होंने यज्ञ का पुरोहित भगवान विष्णु को बना दिया।
जब माता लक्ष्मी ने छोड़ दिया वैकुंठ
भृगु ऋषि के भगवान विष्णु के सीने पर लात मारने पर माता लक्ष्मी नाराज हो गई थीं। माता चाहती थीं कि भगवान विष्णु भृगु ऋषि को दंड दें लेकिन विष्णु भगवान ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। जिसकी वजह से माता लक्ष्मी ने वैकुंठ छोड़ दिया और तपस्या करने के लिए धरती पर करवीपुर (जिसे अब महाराष्ट्र के कोलहापुर के नाम से जाना जाता है) आ गईं।
जब भगवान विष्णु ने छोड़ दिया था वैकुंठ
माता लक्ष्मी के वैकुंठ से चले जाने के बाद भगवान विष्णु भी उन्हें ढूंढने के लिए वैंकुठ छोड़कर धरती पर आ गए। उन्होंने माता को जंगलों और पहाड़ियों पर ढूंढा लेकिन माता लक्ष्मी कही नहीं मिलीं। बाद में भागवान विष्णु एक पहाड़ी पर रहने लगे जिसे आज वेंकटाद्री के नाम से जाना जाता है।
जब ब्रह्मा बने गाय और भगवान शिव बने बछड़ा
माता लक्ष्मी को ढूंढने के लिए भगवान विष्णु की मदद करने के लिए ब्रह्माजी और शिवजी ने गाय और बछड़े का रूप धारण कर धरती पर आ पहुंचे। यह गाय चोल वंश के राजा के पास थी। लेकिन एक रोज उस गाय ने दूध देना बंद कर दिया। पौराणिक कहानियों के मुताबिक वो गाय एक पहाड़ी पर जाकर अपना सारा दूध भगवान विष्णु को पिला देती थी।
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