Sankata Nasana Ganapati Stotram - संकटनाशन स्तोत्र – नारद पुराण (गणेशस्तोत्रम्)
"स्तोत्र" के विषय में थोडा समझ लेते हैं । ‘स्तोत्र’ अर्थात भगवान का स्तवन, दूसरे शब्द में कहा जाये तो भगवान की स्तुति । स्तोत्रपठन करने से मनुष्य के सर्व ओर सूक्ष्म स्तर पर संरक्षककवच निर्माण होकर उसकी अनिष्ट शक्तियों से रक्षा होती है । जिस समय निर्धारित सुर या ले में कोई स्तोत्र कहा जाता है, तब उस स्तोत्र से एक विशिष्ट चैतन्यदायी शक्ति निर्माण होती है । इसलिए स्तोत्र एक विशिष्ट लय में कहना आवश्यक है । श्री गणेश के दो स्तोत्रों से सभी परिचित हैं । उनमें से एक है संकष्टनाशन स्तोत्र’ (गणेशस्तोत्रम्)। यह स्तोत्र नित्यपठन के लिए अत्यंत सरल और प्रभावी है । इस स्तोत्र की रचना देवर्षि नारद ने की है । इसमें श्री गणेश के बारह नामों का स्मरण किया है । इस स्तोत्र का पठन सवेरे, माध्यान्ह एवं सायंकाल में करने से सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । ऐसी पद्धति से योग्य उच्चारण और संकष्टनाशन स्तोत्र के भावपूर्ण पठन से आपको भी इच्छित फलप्राप्ति हो’, ऐसी श्री गणेश जी के चरणों में प्रार्थना है । जय श्री गणेश
नारद पुराण में संकटनाशन गणेश स्तोत्र लिखा गया है, जिसे पढ़कर आप अपने जीवन की हर परेशानी दूर कर सकते हैं.।
भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, विद्यादाता हैं, धन-संपत्ति देने वाले हैं.।इस तरह गौरीपुत्र गणपति जीवन की हर परेशानी को दूर करने वाले हैं.।उनकी उपासना करने से आपके सभी संकट मिट जाएंगे.।
गणेशस्तोत्रम् - Sankata Nasana Ganapati Stotram
नारद उवाच :
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी पुत्रं विनायकं
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुः कामार्थ सिद्धये
Pranamya Shirasa Devam Gowriputram Vinayakam
Bhaktavasam Smarennityam Ayuh Kamartha Siddhaye
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम
तृतीयं कृष्ण पिग्ङाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम
Prathamam Vakratunda Cha Ekadantam Dwiteeyakam
Triteeyam Krishna Pingaksham Gajavaktram Chaturthakam
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकट्मेव च
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टकं
Lambodaram Panchamam Cha Shashtham Vikatameva Cha
Saptamam Vignarajam Cha Dhoomravarnam Thatashtakam
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकं
एकादशं गणपतिम द्वादशं तु गजाननं
Navamam Balachandram Cha Dashamam Tu Vinayakam
Ekadasham Ganapatim Dvadasham Tu Gajananam
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः
न च विघ्नभयं तस्य सर्व सिद्धिकरम प्रभो
Dwa Dashaitaani Naamaani Trisandhyam Yah Paten Narah
Na Cha Vignabhayam Tasya Sarva Siddhikaram Prabho
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्॥
Vidyarthi Labhate Vidyam Dhanarthi Labhate Dhanam
Putrarthi Labhate Putran Moksharthi Labhate Gatim
जपेद्गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् ।
सम्वत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ॥
Japedganapati Stotram Shadbhirmasaih Phalam Labhet
Samvatsarena Siddhim Cha Labhate Natra Samshayah
अष्टेभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: ॥
Ashtebhyo Brahmanebyascha Likhitva Yah Samarpayet
Tasya Vidya Bhavetsarva Ganeshasya Prasadatah
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥
Iti Shri Naradapurane Sankatanashanam Ganesha Stotram Sampurnam
॥ इस प्रकार नारद पुराण के संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् समाप्त होता है जो सब दुखों को नष्ट कर देता है ॥
Sankata Nasana Ganapati Stotram (गणेशस्तोत्रम्) सम्पूर्णं
संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् पाठ का अर्थ- Sankata Nasana Ganapati Stotram meaning
इस स्त्रोत में नारद जी श्री गणेश जी के अर्थ स्वरुप का प्रतिपादन करते हैं. नारद जी कहते हैं कि सभी भक्त पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये इनका नित्यप्रति स्मरण करना चाहिए.।
श्री गणपति जी के सर्वप्रथम वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्ण पिंगाक्ष, गजवक्र, लम्बोदरं, छठा विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति तथा बारहवें स्वरुप नाम गजानन का स्मरण करना चाहिए. क्योंकि इन बारह नामों का जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल में पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, श्री गणपति जी के इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ प्रदान करने वाला होता है.।
इससे विद्या चाहने वाले को विद्या, धन की कामना रखने वाले को धन, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र तथा मोक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस गणपति स्तोत्र का जप छहः मास में इच्छित फल प्रदान करने वाला होता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है इस प्रकार जो व्यक्ति इस स्त्रोत को लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त होती है।
संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् का महत्त्व- Importance of Sankata Nasana Ganapati Stotram
वैदिक पूजा क्रम में पंच देवोपासना भेद में श्री गणेश जी को प्रमुख स्थान प्राप्त हुआ है, गणेश जी की साधना के अनेक तरीके बताये जाते हैं जो बहुत जीवनोपयोगी हैं। श्री गणेश सुखकर्ता व दु:खहर्ता यानी सुख देने व दु:खों को दूर करने वाले देवता माने जाते हैं। इसलिए भगवान गणेश हर काल में ही शुभ और मनचाहे फल देकर संकटमोचक देवता के रूप में भी पूजनीय हैं। भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, विद्यादाता हैं, धन-संपत्ति देने वाले हैं, इस तरह गौरीपुत्र गणपति जीवन की हर परेशानी को दूर करने वाले हैं। उनकी उपासना करने से मनुष्य के सभी संकट मिट जाते हैं। अमीर बनने की चाह रखने वाले हर मनुष्य को अपार धन की प्राप्ति हेतु श्रीगणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे ‘संकटनाशन गणेश स्तोत्र’ का पाठ अवश्य ही करना चाहिए।
संकटनाशन गणेशस्तोत्रम् पाठ कब से प्रारम्भ करें-
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् का पाठ बुधवार या चतुर्थी से प्रारम्भ करना चाहिए।
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् कब-किस समय करें पाठ -
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् का पाठ नित्य सुबह, दोपहर और शाम को करना चाहिए।
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् पाठ के लाभ-
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् मुसीबतें दूर रखे इसके लिए संकटनाशक गणेश स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इस पाठ के प्रभाव से भगवान गणेश मुसीबतों को दूर कर देते हैं। इस पाठ से विद्या, धन, संतान और स्वास्थ्य के इच्छुक हर भक्त की हर इच्छा पूरी हो जाती है। साथ ही जीवन में आने वाली अड़चनों और संकटों से छुटकारा मिलता है।
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् सार-
भगवान गणेश के बारह नामों का यह पाठ संकटनाशक स्तोत्र के नाम से जाना जाता है। इस मंत्र स्तोत्र के चमत्कारी 12 श्रीगणेश नाम स्मरण किया जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें