ईश्वर का कार्य करने में सबको आनद मिलता हे किन्तु कभी हमने सोचा हे की ईश्वर को कोनसा कार्य प्रिय हे दोस्तों इस बात को समजने के लिए एक आज हम एक बहुत ही पुरानी और सुन्दर कहानी है से प्रेरणा लेंगे
एक बार भगवान् शिव और माता पारवती भ्रमण पर निकले तो उन्होंने मार्ग में एक निर्धन ब्राहमण को भिक्षा मागते हुए देखा ...
माता पारवती को उस ब्राह्मण पर दया आ गयी और उन्होंने उस ब्राहमण को चांदी के सिक्को से भरी एक पोटली दे दी।जिसे पाकर ब्राहमण प्रसन्नता पूर्वक अपने सुखद भविष्य के स्वप्न देखता हुआ घर जा रहा था की दुर्भाग्य से रास्ते में एक लुटेरे ने उससे वो पोटली छीन ली।
ब्राहमण दुखी होकर फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया। अगले दिन यह देखकर माता पारवती ने इसका कारन पूछा तो ब्राह्मण ने सारा विवरण बताया यह सुनकर माता पारवती को फिर से दया आ गयी और इस बार एक मूलयवान माणिक दिया | जिसे पाकर ब्राह्मण फिर से प्रस्सन होकर सुखद भविष्य के सुन्दर स्वप्न देखता हुआ घर गया और माणिक को एक पुराना घड़ा था उसमे रख दिया लेकिन ये क्या, सुबह सुबह जब ब्राह्मण की पत्नी पानी भरने गयी तो वह घड़ा ले गयी जिसमे मुद्रिका थी और जैसे ही ब्राह्मण की पत्नी ने घड़ा पानी में डुबोया मुद्रिका पानी में बह गयी ब्राह्मण को पता चला तो वह अपने भाग्य को कोसता हुआ फिर से भिक्षावृत्ति में लग गया।
माता पारवती ने फिर उसे दरिद्र अवस्था में देखा तो उसका कारण पूंछा। ब्राह्मण ने जब सारा विवरण सुनाया तो माता पारवती को बड़ा दुःख हुआ और माता पारवती ने सारा वृतांत भगवान् शिव को बताया और कहा प्रभु इस ब्राह्मण के जीवन में क्या कभी सुख नहीं आ सकता?
अब यहाँ से प्रभु की लीला प्रारंभ हुई। और भगवान् शिव और माता पारवती उस ब्राहमण के पास प्रकट हुए और भगवान शिव ने उस ब्राह्मण को केवल दो पैसे दान में दिए। यह देखकर माता पारवती ने कहा चांदी के सिक्के और माणिक भी इस ब्राह्मण की दरिद्रता नहीं मिटा सके तो इन दो पैसो से इसका क्या होगा” ? यह सुनकर प्रभु बस मुस्कुराए और कहा चलो अब हम इन्हे देखते हे
रास्ते में ब्राहमण सोचता हुआ जा रहा था कि "दो पैसो से तो भोजन भी नहीं आएगा फिरभी वह अपने साथ लेकर जा रहा था की उनकी नजर मछवारे की जाल में फसी एक मछली पर पड़ी जो जाल से छूटने के लिए तड़प रही है
ब्राहमण को उस मछली पर दया आ गयी। उसने सोचा की "इन दो पैसो से पेट की आग तो बुझेगी नहीं। क्यों? न इस मछली के प्राण ही बचा लिए जाये"। उसने मछली को उन दो पैसो से खरीद लिया और नदी में छोड़ने जा रहा था की मछली के मुख से कुछ निकला | ब्राह्मण ने देखा तो वह माणिक था जो घड़े में छुपाया था ब्राह्मण प्रसन्न हो कर चिल्ला रहा था की मिल गया मिल गया तभी भाग्यवश वह लुटेरा भी वहाँ से गुजर रहा था जिसने ब्राहमण के चांदी के सिक्के लुटे थे
उसने ब्राह्मण को “ मिल गया मिल गया ”चिल्लाते हुए सुना तो वह लुटेरा भयभीत हो गया। उसने सोंचा कि ब्राहमण ने उसे पहचान लिया हे और अब वह जाकर राजदरबार में उसकी शिकायत करेगा।
इससे डरकर वह ब्राहमण से रोते हुए क्षमा मांगने लगा। और उससे लुटे हुई सारे चांदी के सिक्के भी वापस कर दीया
तभी माता पारवती ने भगवान् शिव से कहा ,प्रभु ये कैसी लीला है? जो कार्य थैली भर चांदी के सिक्के और मूल्यवान माणिक नहीं कर सका वह आपके दो पैसो ने कैसे कर दिखाया।
तभी भगवान् शिव ने माता पारवती से कहा यह अपनी सोंच का अंतर है, जब उस निर्धन ब्राह्मण को थैली भर चांदी के सिक्के और मूल्यवान माणिक मिला तब उसने मात्र अपने सुख के विषय में सोचा। किन्तु जब उसे दो पैसे मिले तब उसने दूसरे के दुःख के विषय में सोचा।
भगवान् शिव ने आगे बताया की सत्य तो यह है कि, जब मनुष्य दुसरो के दुःख के विषय में सोचता हे जब मनुष्य दुसरो का भला कर रहा होता हे तब वह ईश्वर का ही कार्य कर रहे होते हे और तब ईश्वर भी उनके साथ होते हैं
दोस्तों इस कहानी से यह सीख मिलती हे की हम जो भी कर्म करते है उसमें हमारी नियत और सोच का बहुत ही महत्व है अर्थात जब हम कर्म में अपने आलावा दूसरों के सुख-दुख के बारे में भी विचार करते है तो उस कर्म का परिणाम ही बदल जाता है । जब आप दूसरो के दुःख के विषय में सोंचते है, जब आप दूसरे का भला कर रहे होते हैं, तब आप ईश्वर का कार्य कर रहे होते हैं, और तब ईश्वर आपके साथ होते हैं।
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