श्री गणेश जी का अत्यंत सरल पौराणिक मंत्र - Lord Ganesh Mantra
श्री गणेश मंत्र
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
भावार्थ : घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु श्री गणेश हमारे सारे कार्य बिना विघ्न के पूर्ण करने की कृपा करें
किसी भी प्रकार के कार्य प्रारंभ करने से पूर्व भगवान श्री गणेश जी का स्मरण इस मंत्र के साथ अवश्य करना चाहिए आपके शुभकार्य भगवान श्री गणेश निश्चित ही सिद्ध करेंगे
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
भावार्थ : विघ्नेश्वर वर देनेवाले देवताओं के प्रिय लम्बोदर, कलाओं से परि-पूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित माता पार्वती एवं भगवान् शिव पुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।
श्री गणेश के 11 मंत्र
1. श्री गणेशाय नम:
2. ॐ श्री गणेशाय नम:
3. गं गणपतये नम:
4. ॐ गं गणपतये नम:
5. ॐ गं ॐ गणाधिपतये नम:
6. ॐ सिद्धि विनायकाय नम:
7. ॐ गजाननाय नम.
8. ॐ एकदंताय नमो नम:
9. ॐ लंबोदराय नम:
10 ॐ वक्रतुंडाय नमो नम:
11. ॐ गणाध्यक्षाय नमः
गणेश गायत्री मंत्र :
यह वास्तव में गायत्री मंत्र में ही गणेश जी के मंत्रों को जोड़कर बना हुआ है। पर इसका प्रयोग किसी बड़े अनुष्ठान के समय ही किया जाता है
इस मंत्र का प्रयोग बहुत ही साधारण है परन्तु इसे करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना होता है
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
भगवान श्री गणेश जी की पूजा करके आपको प्रतिदिन ग ‘ॐ गं गणपतये नम:’ अथवा ‘एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्’ मंत्र का विशेष रूप से जप करना चाहिए.
गणपतिजी का बीज मंत्र 'गं' है। इनसे युक्त मंत्र- 'ॐ गं गणपतये नमः' का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है। किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए।
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
भावार्थ- जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादिसे सदा सेवित रहते हैं, कैथ तथा जामुन फल जिनके लिए प्रिय भोज्य है, पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के शोक का विनाश करने वाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरण कमलों में नमस्कार करता हुं।
रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥
भावार्थ : हे गणाध्यक्ष रक्षा करे रक्षा करे हे तीनों लोकों के रक्षक रक्षा करे ; आप भक्तों को अभय प्रदान करनेवाले हैं, भवसागर से मेरी रक्षा कीजिये प्रभु ।
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