प्रथम पूजा के अधिकारी श्रीगणेश - भगवान गणेश की पूजा पहले क्यों की जाती है
अधिकार कभी माँगने से नहीं मिलता, इसके लिए योग्यता होनी चाहिए। संसार में अनेकों देवी-देवता पूजे जाते हैं। पहिले जो जिसका इष्टदेव होता, उसी की पूजा किया करता है। इससे बड़े देवताओं के महत्त्व में कमी आने की आशंका उत्पन्न हो गई, इस कारण देवताओं में परस्पर विवाद होने लगा। वे उसका निर्णय प्राप्त करने के लिए शिवजी के पास पहुँचे और प्रणाम करके पूछने लगे–प्रभो !
हम सबमें प्रथमपूजा का अधिकारी कौन है ?
शिवजी सोचने लगे कि किसे प्रथमपूजा का अधिकारी मानें ? तभी उन्हें एक युक्ति सूझी, बोले–देवगण ! इसका निपटारा बातों से नहीं, तथ्यों से होगा। इसके लिए एक प्रतियोगिता रखनी होगी।
देवगण उनका मुख देखने लगे। शंकित हृदय से सोचते थे कि कैसी प्रतियोगिता रहेगी ? यह शिवजी ने उनके मन के भाव ताड़ लिये, इसलिए सान्त्वना भरे शब्दों में बोले–'घबराओ मत, कोई कठिन परीक्षा नहीं ली जायेगी। बस इतना ही कि सभी अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर संसार की परिक्रमा करो और फिर यहाँ लौट आओ। जो पहिले लौटेगा, वही सर्वप्रथमपूजा का अधिकारी होगा।
अब क्या देर थी, सभी अपने अपने वाहन पर चढ़कर दौड़ पड़े। किसी का वाहन गजराज था तो किसी का सिंह, किसी का भैंसा तो किसी का मृग, किसी का हंस तो किसी का उल्लू, किसी का अश्व तो किसी का श्वान। अभिप्राय यह कि वाहनों की विविधता के दर्शन उस समय जितने भले प्रकार से हो सकते थे, उतने अन्य समय में नहीं।
सबसे गया बीता वाहन गणेशजी का था मूषक। उसे 'चूहा' भी कहते हैं। ऐसे वाहन के बल भरोसे इस प्रतियोगिता में सफल होना तो क्या, सम्मिलित होना भी हास्यास्पद था। गणेश जी ने सोचा–छोड़ो, क्या होगा प्रतियोगिता में भाग लेने से ? हम तो यहाँ बैठे रहकर ही तमाशा देखेंगे।
वे बहुत देर तक विचार करते रहे। अन्त में उन्हें एक युक्ति सूझी–'शिवजी स्वयं ही जगदात्मा हैं, यह संसार उन्हीं का प्रतिबिम्ब है, तब क्यों न इन्हीं की परिक्रमा कर दी जाये। इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा हो जायेगी।'
ऐसा निश्चय कर उन्होंने मूषक पर चढ़ कर शिवजी की परिक्रमा की और उनके समक्ष जा पहुँचे। शिवजी ने कहा–'तुमने परिक्रमा पूर्ण कर ली ?' उन्होंने उत्तर दिया–'जी!' शिवजी सोचने लगे कि 'इसे तो यहीं घूमते हुए देखा, फिर परिक्रमा कैसे कर आया ?'
देवताओं का परिक्रमा करके लौटना आरम्भ हुआ और उन्होंने गणेशजी को वहाँ बैठे देखा तो माथा ठनक गया। फिर भी साहस करके बोले–'अरे, तुम विश्व की परिक्रमा के लिए नहीं गये ?'
गणेशजी ने कहा–'अरे, मैं ! कब का यहाँ आ गया !'
देवता बोले–'तुम्हें तो कहीं भी नहीं देखा ?'
गणेशजी ने उत्तर दिया–'देखते कहाँ से ? समस्त संसार शिवजी में विद्यमान है, इनकी परिक्रमा करने से ही संसार की परिक्रमा पूर्ण हो गई।'
इस प्रकार गणेशजी ने अपनी बुद्धि के बल पर ही विजय प्राप्त कर ली। उनका कथन सत्य था, इसलिए कोई विरोध करता भी तो कैसे ? बस, उसी दिन से गणेश जी की प्रथमपूजा होने लगी।'
ॐ गंग गणपतये नमः
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