चाहे कोई भी पूजा हो शादी हो कोई हवन हो या फिर घर का मुहूर्त हो इस एक Swastik Mantra मंत्र को आपने जरूर सुना होगा। ऊं स्वस्ति न इंद्रो..
स्वास्तिक’ शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, किन्तु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना निहित है।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Svasti Na Indro Vrddha-Shravaah | Svasti Nah Puussaa Vishva-Vedaah |
Svasti Nas-Taarkssyo Arisstta-Nemih | Svasti No Vrhaspatir-Dadhaatu ||
Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Om Asato Maa Sad-Gamaya | Tamaso Maa Jyotir-Gamaya |
Mrtyor-Maa Amrtam Gamaya | Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
"ॐ हम सभी को असत्य से सत्य की राह दिखाना, हम सभी को अज्ञानता से ज्ञान की और ले जाना, हम सभी को मृत्यु से अमरत्व तक ले चलना| ॐ शांति शांति शांति||"
(हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
1. स्वस्ति मंत्र किसी भी पूजा के प्रारंभ में किया जाना चाहिए।
2. स्वस्ति मंत्र के पश्चात सभी दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में प्रयुक्त जल के छीटें लगाने चाहिए।
3. नए घर मे प्रवेश के समय भी ऐसा करना मंगलकारी होता है।
4. विवाह के विधिविधान में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।
Swasti Mantrak ( स्वस्ति मंत्र)
स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते थे तथा यह माना जाता था कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया 'स्वस्तिवाचन' कहलाती है।‘स्वास्तिक’ शब्द का अर्थ = अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Svasti Na Indro Vrddha-Shravaah | Svasti Nah Puussaa Vishva-Vedaah |
Svasti Nas-Taarkssyo Arisstta-Nemih | Svasti No Vrhaspatir-Dadhaatu ||
Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
ॐ असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्योतिर्गमय ।
मृत्योर्मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
Om Asato Maa Sad-Gamaya | Tamaso Maa Jyotir-Gamaya |
Mrtyor-Maa Amrtam Gamaya | Om Shaantih Shaantih Shaantih ||
"ॐ हम सभी को असत्य से सत्य की राह दिखाना, हम सभी को अज्ञानता से ज्ञान की और ले जाना, हम सभी को मृत्यु से अमरत्व तक ले चलना| ॐ शांति शांति शांति||"
(हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥
योग साधना की शुरुआत में की जाने वाली प्रार्थना
ॐ सर्वेशां स्वस्तिर्भवतु
सर्वेशां शान्तिर्भवतु
सर्वेशां पुर्णंभवतु
सर्वेशां मङ्गलंभवतु
लोका: समस्ता: सुखिनो भवन्तु
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
हरि ॐ ! श्री गुरुभ्यो नम: ! हरि ॐ
स्वस्ति मंत्र कब बोला जाता है?
1. स्वस्ति मंत्र किसी भी पूजा के प्रारंभ में किया जाना चाहिए।
2. स्वस्ति मंत्र के पश्चात सभी दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में प्रयुक्त जल के छीटें लगाने चाहिए।
3. नए घर मे प्रवेश के समय भी ऐसा करना मंगलकारी होता है।
4. विवाह के विधिविधान में भी स्वस्ति वाचन का महत्व है।
स्वस्तिवाचन का अर्थ क्या होता है?
हमारे पास चारों ओर से ऐंसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों।निष्कर्ष :
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अति उत्तम
जवाब देंहटाएंक्या सभी मंत्रो की अर्थ के साथ पुस्तक उपलब्ध हैं
यदि हां तो कहा मिलेगी।
Pura savsti vachan likhit me nhi aa rha
जवाब देंहटाएं