शरीर और मन क्या हे और उसे कैसे नियंत्रित करते हे
श्रीभगवानुवाच |
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते || 35||
अर्थ : श्रीभगवान् बोले- हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल है और इसको नियंत्रित करना बड़ा कठिन है, परन्तु हे कुन्तीपुत्र ! अभ्यास और वैराग्य से इसे वश किया जा सकता है ।। 6/35 ।।
व्याख्या : भगवान् कह रहे हैं- हे अर्जुन ! तू बिलकुल सही कह रहा है कि यह मन बड़ा चंचल है, इसको काबू में करना बड़ा मुश्किल है, लेकिन यदि तू मन को वश करना चाहता है तो इसके लिए अभ्यास और वैराग्य दो उपाय हैं। अभ्यास का अर्थ है एक स्थान पर मन को एकाग्र करना और वैराग्य का मतलब है -जिन -जिन विषयों में मन जाता है, उन-उन विषयों के प्रति आसक्ति के भाव को हटाना। अभ्यास और वैराग्य साधक के लिए पक्षी के दो पंखों की तरह होते हैं, जो साधक के मन को नियंत्रित कर साधना में लगाए रखते हैं। वैसे भी अध्यात्म की यात्रा इन दोनों उपायों के आधार पर ही आगे बढ़ती है। महर्षि पतंजलि ने भी अपने योगसूत्रों में मन को साधने के ये दो ही उपाय बतलायें हैं। इन दोनों उपायों के निरंतर अभ्यास से मन काबू में होने लगता है। ये दोनों उपाय ही साधक को मुक्ति तक ले जाते हैं।
मनुष्य की इन्द्रिया (आँख,नाक,कान,जिहवा,मुख) विषयो की और ले जाते हे और मन को मोहित करता हे और मन विषयो की और दौड़ाता हे इसी लिए मन को काबू में लेना बहुत ही आवश्यक हे और अगर मन को वश में नही किया तो मन मनुष्य को वश में कर लेता हे इसीलिये मन को नियंत्रित करना बहुत ही जरुरी हे
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से प्रश्न किया की मन को रोकना अशंभव हे मन तो वायु की तरह चंचल होता हे जैसे वायु को रोकना अशंभव हे वैसे ही मन को काबू करना अशंभव हे
भगवान श्री कृष्ण ने कहा मन नो नियंत्रित करना कठिन हे लेकिन अशंभव नही हे मन को अभ्याश और वैराग्य से काबू में कर शकते हे
जैसे एक चंचल घोड़े पे काबू पाने के लिए घोड़ेसवार जितना जोर लगाता उतना ही वो घोडा उसे निचे गिरा देता हे लेकिन निरंतर प्रयत्न करने से सवार उस घोड़े पर काबू पा लेता हे और घोड़े पर सवार हो जाता हे वैसे ही मन को भी प्रयत्न से काबू में ला शकते हे और..
एक बार काबू करने पर भी मन भटक जाता हे इसीलिए वैराग्य(निरंतर अभ्याश से ) की तलवार से मन को काबू कर शकते हे इसलिए मन को कण्ट्रोल करना मुश्किल हे लेकिन अशंभव नही हे
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