क्या मात्रा खाली पेट रहने से शिवलिंग पर बेल पत्र, जल, दूध इत्यादि का अभिषेक करने से भगवानशिव की सच्ची पूजा उपासना हो जाती है?
‘उप’ का अर्थ है, ‘निकट’ और ‘वास’ का अर्थ है- ‘रहना’। किसके निकट? ईश्वर के! अतः उपवास का अर्थ हुआ- ‘ईश्वर के निकट वास करना।’ यही तो ध्यान की शाश्वत पद्धति है, जो हमें ईश्वर के प्रकाश स्वरूप का साक्षात् दर्शन कराती है और उस पर एकाग्र होने की युक्ति है। वास्तव में, ब्रह्मज्ञान की ध्यान-प्रक्रिया ही सच्चा उपवास है, प्रभु की सच्ची उपासना है। ‘उपासना’ शब्द का अर्थ भी ईश्वर के नज़दीक बैठना है।
भगवान शिव की सच्ची उपासना & सच्ची पूजा | पूजा का अर्थ
शिव पुराण के मुताबिक भक्ति के तीन रूप हैं। यह है मानसिक या मन से, वाचिक या बोल से और शारीरिक। सरल शब्दों में कहें तो तन, मन और वचन से भक्ति।
इन तीनों तरीकों से की जाने वाली सेवा ही शिव धर्म कहलाती है। इस शिव धर्म या शिव की सेवा के भी पांच रूप हैं।
1) कर्म - लिंगपूजा सहित अन्य शिव पूजन परंपरा कर्म कहलाते हैं।
2) तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
3) जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
4) ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
5) ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
2) तप - चान्द्रायण व्रत सहित अन्य शिव व्रत विधान तप कहलाते हैं।
3) जप - शब्द, मन आदि द्वारा शिव मंत्र का अभ्यास या दोहराव जप कहलाता है।
4) ध्यान - शिव के रूप में लीन होना या चिन्तन करना ध्यान कहलाता है।
5) ज्ञान - भगवान शिव की स्तुति, महिमा और शक्ति बताने वाले शास्त्रों की शिक्षा ज्ञान कही जाती है।
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