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सोमवार, 9 मार्च 2020

होलिका कथा - प्रहलाद होलिका कथा - Holika dahan story hindi

होलिका दहन कथा - Holika dahan story hindi

प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर। यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए।

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है।

ऐसा वरदान पाकर वह अजेय बन गया । हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया। उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा।

Story of Prahlad and Holika

पहाड़ की चोटी से गिराने पर भी वह नहीं मरा

तब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने कहा - मुझे वरदान मिला हे की अग्नि मुझे नहीं जला सकती में उसे मार सकती हु

Holika Prahlad Story -  प्रहलाद होलिका कथा


तब होलिका प्रह्लाद को अपनी गॉड में लेकर अग्नि में बेथ गयी क्योकि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था।

किन्तु परिणाम उसके विपरीत आया , अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करने पर होलिका जलकर भस्म हो गई

और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है।

तत्पश्चात् हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला।

तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा।


होली का पर्व यह संदेश भी देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं

होलिका कौन थी?

होलिका, कश्यप ऋषि की पुत्री और हिरनकश्यप की बहन थी होलिका को आग में न जलने का वरदान था परन्तु जब वह विष्णु भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर लकड़ी के गठ्ठर पे बैठी जिसमे आग लगाया गया और भगवान विष्णु जी के कृपा से प्रहलाद बच गए और होलिका जल कर खाक हो गयी।

हिरणकश्यप कौन था?

हिरणकश्यप असुर था जिसकी कथा पुराणों में लिखी गयी है। इसका वध विष्णु जी ने नर्शिंह का अवतार लेकर किया था

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