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बुधवार, 28 अक्टूबर 2020

क्यों सबसे पहले द्रौपदी की मौत हुई | pandavas swarg yatra

क्यों सिर्फ युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंच पाए और क्यों सबसे पहले द्रौपदी की मौत हुई?


महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद पांडवो ने कुछ वर्षो तक हस्तिनापुर पर राज किया गांधारी के श्राप के कारण भगवान् श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग दिए फिर बलराम ने समाधी धारण कर अपने प्राण त्याग दिए

यह सूचना मिलने पर पांडवो सहित द्रौपदी ने भी परलोक जाने का निश्चय किया

स्वर्ग की यात्रा पर निकलने से पहले युधिष्ठिर ने युयुत्सु को सम्पूर्ण राज्य की देख्बाहल का भार सोप दिया अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर नरेश और कर्ण पुत्र वृषकेतु को इंद्रप्रस्थ नरेश घोषित कर पांडव मोक्ष प्राप्ति के लिए निकल पड़े |

परन्तु हस्तिनापुर से निकलने के बाद रास्ते में पांडवो के साथ एक कुत्ता भी उनके साथ चलने लगा यह देख अर्जुन भीम नकुल सहदेव को बड़ा ही आश्चर्य हुआ तब युधिष्ठिर ने बताया की यदि ये भोला जिव साथ आना चाहता हे तो आने दो मनुष्य की अंतिम यात्रा में जो साथ दे उससे सच्चा सहयात्री कोई नहीं 

pandavas swarg yatra



फिर पांडव भगवान् शिव की स्त्रुति कर आगे बढ़ते हे केदारनाथ में पांडवो पर प्रसन्न होकर भगवान् शिव उन्हें दर्शन देते हे भगवान् शिव कहते हे की आगे का मार्ग तय करने के लिए हर भाव हर अवगुण हर शक्ति सबकुछ त्यागना होगा जब मनुष्य में केवल पंचतत्व रह जाते हे आत्मा में चेतना और ह्रदय में धर्म रह जाते हे तो ही ये मार्ग दीखता हे युधिष्ठिर भगवान् शिव की बात समज जाते हे और सभी पांडव अपने सशत्र का त्याग करते हे तब आगे का मार्ग दिखने लगता हे

जैसे ही पांचो पांडव उस मार्ग पर आगे बढ़ते हे की द्रौपदी के देह ने उसका साथ छोड़ा

द्रौपदी की मृत्यु के पश्चात भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि सभी लोगों में से पहले द्रौपदी ने ही अपना देह क्यों छोड़ा? इस सवाल का जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने कहा कि यही नियति हे और इसका सम्मान करना चाहिए महादेव ने कहाथा की इस यात्रा पर चलने से पूर्व हमे अपना सब कुछ त्यागना होगा

इसके बाद नकुल के देह ने उसका साथ छोड़ा। भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया की नकुल को स्वयं की सुंदरता से बड़ा मोह था और वह अपने मोह के भाव को नहीं त्याग पाया इसी कारन उसका अंत हुआ

नकुल के बाद सहदेव के देह ने उसका साथ छोड़ा तभी भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया की उसकी मृत्यु का कारन था संदेह वह अपने मन से संदेह को नहीं त्याग पाया इसी दोस के कारण उसका अंत हुआ

सहदेव के बाद अर्जुन के देह ने उसका साथ छोड़ा। जब भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर अभिमान था की उससे श्रेष्ठ कोई नहीं केदारनाथ में वह अपने (मद) अहंकार को नहीं त्याग पाया इसलिए वह अंत को प्राप्त हुआ

आगे बढ़ते हुए भीम और कुत्ता एक खाई में गिर पड़े भीमने युथिष्ठिर को पुकारा की मुझे बचाइए फिर भी युधिष्ठिर ने कुत्ते को बचाया

भीम ने उसका कारण पूछा तब युधिष्ठिर ने बताया क्षमा करना भीम तुम महाबली हो अपनी सहायता करने में सक्षम हो किन्तु ये भोला कुत्ता अपनी सहायता नहीं कर सकता इसीलिए मेने उसे बचाया भीम ने कहा मे समज गया की मेरा अंत आ गया हे लेकिन में अपने अंत का कारन जानना चाहता हु युधिष्ठिर ने बताया की क्रोध तुम्हारे अंत का कारण हे तुमने क्रोध में उनके भी प्राण ले लिए थे जिन्होंने कोई दोष नहीं किया और आज तुम्हारे अंत कारन भी क्रोध ही हे

युधिष्ठिर ने अपने आगे की यात्रा उस कुत्ते के साथ पूरी की। स्वर्ग के द्वार पर उन्हें धर्मराज मिले जिन्होंने युधिष्ठिर को कहा की वह इस कुत्ते के साथ स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते हे

युधिष्ठिर ने कहा की जो अंत तक साथ दे वो ही धर्म हे और इस नाते यह कुत्ता मेरा धर्म हे में युधिष्ठिर अपने धर्म को त्याग कर स्वर्ग की कामना भी नहीं कर सकता

युधिष्ठिर की यह बात सुनकर उस काले कुत्ते ने अपना असली रूप धारण किया जो धर्मराज का रूप था धर्मराज ने बताया की तुम काम क्रोध लोभ मोह सबसे विरक़्त रहे इसीलिए तुम शशरीर स्वर्ग मे प्रवेश कर पाए तुम्हारे भाई और पत्नी अपने गुण अवगुण और शक्ति का मद नहीं छोड़ पाए इसीलिए वह यहाँ तक पोहचने में असक्षम रहे

फिर धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग के अंदर ले गए वहां उन्होंने कौरवों को तो देखा लेकिन कहीं भी अपने भाई पांडव नजर नहीं आए। युधिष्ठिर को पता चला कि कर्ण समेत उसके सभी भाई नर्क में हैं।

युधिष्ठिर ने धर्मराज से कहा मेरे भाई तथा द्रौपदी जिस लोक में गए हे में भी उसी लोक में जाना चाहता हु धर्मराज ने कहा यदि आपकी ऐसी ही इच्छा हे तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइये यह आपको आपके भाइयो के पास पंहुचा देगा

देवदूत युधिष्ठिर को ऐसे मार्ग पर ले गया जो बहुत ही दुर्गम और ख़राब था उस मार्ग पर चारो और अंधकार फैला हुआ था

सभी और लाशे थी जिससे दुर्गन्ध आ रही थी वहां की दुर्गन्ध से तंग आकर युधिष्ठिर ने देवदूत से पूछा की हमे इस मार्ग पर और कितनी दूर चलना हे और मेरे भाई कहा हे देवदूत ने कहा यदि आप थक गए हे तो हम पुनः लौट चलते हे

युधिष्ठिर ने ऐसा ही करने का निश्चय किया परन्तु जब युधिष्ठिर लौट रहे थे तब उन्हें उनके भाइयो की आवाज़ सुनाई दी तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा तुम पुनः धर्मराज के पास लौट जाओ मेरे यहाँ रहने से यदि मेरे भाइओ को सुख मिलता हे तो में इस दुर्गम स्थान पर ही रहूँगा युधिष्ठिर ने कहा यदि मेरे भाइयोने अनीति की हे तो उसका कारन में हु ज्येष्ठ होने के नाते मेरा कर्तव्य था की में अपने भाइयो को उचित मार्ग दिखाऊ

में यहाँ से नहीं जाऊंगा जहा मेरा परिवार रहेगा वोही मेरे लिए स्वर्ग हे

देवदूत ने सारी बात धर्मराज को बता दी फिर कुछ क्षण पश्चात धर्मराज भी युथिष्ठिर के पास आ गए युथिष्ठिर ने धर्मराज से पूछा की ये सब क्या हे तब धर्मराज ने बताया की तुमने अश्व्थामा की मरने की बात कहकर छल से द्रोणाचार्य का वध करवाया था इसी परिणाम स्वरुप तुम्हे भी छल से ही कुछ समय नर्क के दर्शन करने पड़े

आगे धर्मराज ने कहा कि पांडवों का नर्कवास और कौरवों का स्वर्गवास कुछ समय के लिए ही है, यह उनके कर्मों के रूप में उन्हें दिया गया है। कर्ण ने द्रौपदी का असम्मान किया था जिसकी वजह से उसे नर्क भोगना पड़ा। भीम और अर्जुन ने धोखे से दुर्योधन की हत्या की, नकुल और सहदेव ने उनका साथ दिया जिसकी वजह से उन्हें भी नर्क में आना पड़ा।

जबकि कौरव अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहे। इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने एक सच्चे क्षत्रिय की तरह अपने प्राण भी त्यागे, इसलिए अपने इस सुकर्मों के लिए दुर्योधन और उसके सभी भाइयों को कुछ समय के लिए स्वर्ग में रखा गया था ।

अपने कर्मो के अनुसार तुम्हारे भाई नर्क को भोगकर स्वर्गलोक आ गए हे अब तुम मेरे साथ स्वर्ग चलो जहा तुम्हारे भाई और अन्य वीर पहले ही पोहच गए हे

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