ऋषि संदीपनि ने सुनाई मत्स्य अवतार की कहनी और समुद्र मंथन की कथा
ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण को राजा सत्यव्रत के अहंकार की कहनी सुनाते हैं। राजा सत्यव्रत एक बार नदी में स्नान करते हुए सूर्य देव को आर्ग दे रहे थे तो एक मत्स्य उनकी हाथ में भरे जल में आ जाती है
वह मत्स्य राजा से विनीति करती है की उसे नदी में दूसरी बड़ी मछलियों से ख़तरा है, तो राजा उसे अपने साथ अपने महल ले जाता है। जब वह उसे एक सोने के बर्तन में छोड़कर जाता है तो वह बड़ी होती जाती है
राजा जैसे जैसे उसके लिए बड़े से बड़े पात्र का प्रबंध करता है तो मत्स्य और बड़ी हो जाती है। राजा को अपनी गलती का अहसास हो जाता है तो वह उस मत्स्य को विशाल नदी में छोड़ कर आते हैं, जहां उन्हें विष्णु भगवान दर्शन देते हैं। भगवान विष्णु के इस अवतार को मत्स्य अवतार कहा जाता है।
विष्णु भगवान राजा सत्यव्रत को प्रलय के बाद मनु बनकर पृथ्वी पर जीवन का पुनः निर्माण करने का रास्ता बताते हैं। ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम को समुद्र मंथन की कहनी भी सुनते हैं।
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