महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद यादवों का प्रभाव काफी बढ़ता जा रहा था और वह आपस में ही संघर्ष करने लगे थे। ऐसे में एक दिन वायु देवता को दूत बनाकर देवताओं ने भगवान श्रीकृष्ण के पास भेजा। वायुदेव ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि देवताओं ने कहा है कि आपने पृथ्वी पर फैले पाप का अंत करने के लिए अवतार लिया था और अब आपका कार्य पूरा हो गया है। अगर आपकी इच्छा हो तो आप अपने लोक वापस आ जाएं अथवा आपकी अभी और पृथ्वी पर रहने की इच्छा हो तो आप रह सकते हैं।
भगवान् कृष्ण ने कैसे छोड़ी थी पृथ्वी? | How Lord Krishna left Earth?
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जब तक यदुवंशियों का अंत नहीं हो जाता तब तक पृथ्वी का भार कम नहीं होगा इसलिए अब मैंने इनके अंत की व्यवस्था कर दी है और अब केवल सात दिनों के अंदर मैं धरती का त्याग कर दूंगा।
भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने के बाद वायुदेव वापस चले गए लेकिन द्वारिका में अपशकुन के बादल मंडराने लगे। एक दिन सभी यदुवंशी प्रभास क्षेत्र यानी वर्तमान समय में सोमनाथ मंदिर के पास स्थित समुद्र तट पर आए। यहीं यादवों में आपसी विवाद हो गया और वह एक-दूसरे को मारने लगे। कुछ ही समय में सभी यदुवंशी का अंत हो गया
शेषनाग अवतार बलराम जी ने कैसे त्यागे प्राण
इस स्थिति को देखकर बलरामजी सागर तट पर बैठ गए। भगवान श्रीकृष्ण और उनके सारथी दारुक ने देखा कि बलरामजी के मुख से एक विशाल नाग बाहर निकल रहा है। समुद्र उस नाग की स्तुति कर रहा रहा है। कुछ ही समय में वह नाग सागर में समा गया। इस तरह बलराम जो शेषनाग के अवतार थे वो शरीर का त्यागकर क्षीरसागर में चले गए। सोमनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर जहां बलरामजी ने देह त्याग किया था वहां बलरामजी का एक मंदिर बना हुआ है।
बलरामजी के देह त्याग ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सारथी से कहा कि अब मेरे भी जाने का समय हो गया है इसलिए में योग में लीन होने जा रहा हूं। द्वरिका में जो लोग बच गए हैं उन सभी को कह दो कि अर्जुन के आने के बाद वह द्वारिका को छोड़कर उनके साथ चले जाएं।
भगवान् कृष्ण ने कैसे छोड़ी थी पृथ्वी? | How Lord Krishna left Earth?
इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण योग में लीन गए और जरा नामक शिकारी ने भगवान श्रीकृष्ण के पैर को मृग की आंख समझकर दूर से बाण चला दिया। इस बाण के लगते ही भगवान मूर्च्छित हो गए। जरा ने जब श्रीकृष्ण को देखा तो काफी घबरा गया और दुखी हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने तब जरा को समझाया कि यह तो मेरे विधान से ही रचा हुआ था। मैंने स्वयं ही अपने देह त्याग के लिए इस विधि को चुना था। क्योंकि तुम्हारे पूर्वजन्म का ऋण था मुझ पर। जरा पूर्वजन्म में बाली था जिसका वध भगवान राम ने किया था।
क्यों और कैसे डूबी थी द्वारिका
जब अर्जुन द्वारिका पधारे और सब हाल जाना तो यदुवंशियों के शव पहचानकर उनका अंतिम संस्कार किया। श्रीकृष्ण के जाने के बाद रुक्मिणी और जांबवती ने भी देह त्याग दिया। बलरामजी की पत्नी रेवती ने भी देह त्याग कर दिया। इसके बाद दुखी मन से अर्जुन द्वारिका से सभी बचे हुए लोगों को अपने साथ लेकर लौट पड़े और अर्जुन के द्वारिका से जाते हुए समुद्र ने द्वारिका नगरी को डुबो दिया। इसके साथ ही कलियुग भी धरती पर आ पहुंचा।
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