सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र हैं । । देवी सीता मिथिला के नरेश राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थीं । इनका विवाह अयोध्या के नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था।
क्यों दिया माता सीता ने गाय, पंडित, कौवे और नदी को श्राप - Seeta Shrap Ramayan
त्रेतायुग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के अवतार राम और सीता राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात पिंडदान हेतु बिहार स्थित बोधगया पहुंचे। उस समय कुछ ऐसी घटना हुई जिसके कारण माता सीता ने 4 लोगों को ऐसा श्राप दिया, जिसका प्रभाव आज तक है।
बोध गया पहुंचने के पश्चात भगवान राम और लक्ष्मण पिंड दान की सामग्री लेने गए, परंतु दोनों भाइयों के आने में देर होने के कारण पिंडदान का समय निकला जा रहा था, अचानक राजा दशरथ ने स्वयं दर्शन दिए और पिंडदान करने के लिए कहा, उन्होंने कहा उन्हें भूख लगी है। तब सीता ने उत्तर दिया कि उन्हें उनकी पुत्रों के आने तक का प्रतीक्षा करनी होगी जिससे वे तीनों उन्हें चावल और पिंड बनाकर उन्हें दान कर सकेंगे।
माता सीता पिंड दान गया
परंतु दशरथ ने प्रतीक्षा करने से मना कर दिया और माता सीता से फल्गु नदी के किनारे के रेत से पिंड बनाकर दान करने के लिए कहा, तब राम तथा लक्ष्मण के आने से पहले ही माता सीता ने पूरी विधि विधान के साथ पिंड दान कर दिया उस समय वहां जो पांच साक्षी थे, वो वट का पेड़, फल्गु नदी, एक गाय, एक तुलसी का पौधा और एक ब्राह्मण थे।
जब राम और लक्ष्मण लौटकर आए और पिंडदान के विषय में पूछा तब माता सीता ने समय का महत्व बताते हुए कहा, कि उन्होंने पिंडदान कर दिया है। अपनी कही बात का सत्यापन करने के लिए सीता ने उन पांच पौधों से राम को सत्य बताने के लिए कहा, परंतु वट का पेड़ के अतिरिक्त सभी ने झूठ बोल दिया। तब स्वयं राजा दशरथ ने स्वयं राम के सामने यह बोला कि की माता सीता ने विधि विधान के साथ उन्हें पिंडदान किया है। तब सीता जी का सत्य सिद्ध हुआ, तब सीताजी ने उन चारों को श्राप दिया।
माता सीता का श्राप
फल्गु नदी को श्राप मिला कि गया में केवल पृथ्वी के नीचे ही बहेगी और ऊपर से सदैव सुखी रहेगी, गाय को श्राप मिला कि गाय की घर घर में पूजा तो होगी परंतु फिर भी उसे जूठा भोजन खाना पड़ेगा, तुलसी को श्राप मिला कि उनका गया में कोई भी तुलसी का पौधा नहीं होगा, ब्राह्मण को श्राप मिला कि गया में ब्राह्मण के कभी जीवन संतुष्ट नहीं होंगे, और सदैव दरिद्रता में ही जिएंगे|
और अंत में सीता जी ने वट के पेड़ को वरदान दिया कि जो भी गया में पिंडदान करने के लिए आएगा, वह वट के पेड़ को भी पिंडदान करेगा। तो दोस्तों इस प्रकार से सीता माता का श्राप वहां उपस्थित 4 साक्षी आज भी भोग रहे हैं।
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