स्वयं विचार कीजिए!
कभी-कभी कोई घटना मनुष्य के सारे जीवन की योजनाओं को तोड़ देती है
और मनुष्य उस आघात को अपने जीवन का केन्द्र मान लेता है।
पर क्या भविष्य मनुष्य की योजनाओं के आधार पर निर्मित होता है? नहीं …
जिस प्रकार किसी ऊँचे पर्वत पर चढने वाला
उस पर्वत की तलाई में बैठ कर जो योजना बनाता है।
क्या वही योजना उसे उस पर्वत की चोटी तक पहुँचाती हैं। नहीं …
वास्तव में वो जैसे-जैसे ऊपर चढता है। वैसे-वैसे उसे नई-नई चुनौतियाँ,
नई-नई परेशानियाँ और नये-नये अवरोध मिलते हैं
प्रत्येक पद पर वो अपने अगले पद का निर्णय करता है
प्रत्येक पद पर उसे अपनी योजनाओं को बदलना पडता है
इसलिए कहीं पुरानी योजना उसे खाई में न धकेल दे
वो पर्वत को अपने योग्य नहीं बना पाता…
केवल स्वंय को पर्वत के योग्य बना सकता है।
क्या जीवन के साथ भी ऐसा ही नहीं ??
जब मनुष्य जीवन में किसी एक चुनौती या एक
अवरोध को अपने जीवन का केन्द्र मान लेता है तो
वह अपने जीवन की गति को ही रोक देता है।
तो वो अपने जीवन में सफल नहीं बन पाता
और न ही सुख और शांति प्राप्त कर पाता
अर्थात जीवन को अपने योग्य बनाने के बदले…
स्वंय अपने को जीवन के योग्य बनाना ही
सफलता और सुख का एक मात्र मार्ग नहीं?
स्वयं विचार कीजिए!
उद्धरेत आत्मनात्मानम
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