स्वयं विचार कीजिए!
मनुष्य के ह्दय में भय का साम्राज्य रहता है सदा…
कभी सम्पत्ति के नाश का भय,कभी अपमान का भय,
कभी अपनो से छुट जाने का भय इसलिए
भय का होना सबको स्वाभाविक ही लगता है।
क्या कभी सोचा है जो स्थिति अथवा
वस्तु भय को जन्म देती है
क्या वहीं से वास्तविक दुख आता है? नहीं …
ऐसा तो कोई नियम नहीं …
और सबका अनुभव तो ये बताता है कि भय धारण करने से
भविष्य के दुख का निवारण नहीं होता। भय केवल
आने वाले दुख की तरह कल्पना मात्र ही है
वास्तविकता से इसका कोई संबंध नहीं है
तो क्या ये जानते हुए भी कि भय(डर) कुछ
और नहीं केवल कल्पना मात्र ही है।
इससे मुक्त होकर निर्भय बन पाना…
क्या बहुत कठिन है??
स्वयं विचार कीजिए!
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