दोस्तों क्या आप आदि शंकराचार्यरचित वेदसारशिवस्तोत्रम् : पशूनां पतिं पापनाशं परेशं का हिंदी और English Lyrics का पोस्ट ढूंढ रहे हो तो आपसे अनुरोध है की कुछ समय दे कर पुरे लेख को अच्छी तरह से पढ़े ताकि आपको पूरी जानकारी मिल सके।और उम्मीद करता हूँ कि आपके लिए जरूर helpful साबित होगा |
वेदसारशिवस्तोत्रम् - पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं - महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ||
Pashunam Patim Papanasham Paresham
Gajendrasya Kruttim Vasanam Varenyam
Jathajuthamadhye Sphuradgangavarim
Mahadevamekam Smarami Smararim (1)
महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं - विभुं विश्र्वनाथम् विभूत्यङ्गभूषम् |
विरुपाक्षमिन्द्वर्कवह्निनेत्रं - सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ||
Mahesham Suresham Suraratinasham
Vibhum Vishwanatham Vibhutyangabhusham
Virupakshamindvarkavahnitrinetram
Sadanandamide Prabhum Panchavaktram (2)
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं - गवेन्द्राधिरूढम् गुणातीतरूपम् |
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गम् - भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ||
Girisham Ganesham Gale Nilavarnam
Gavendradhiroodham Gunatitarupam
Bhavam Bhasvaram Bhasmana Bhushitangam
Bhavanikalatram Bhaje Panchavaktram (3)
शिवाकान्त शम्भो शशाङ्कार्धमौले - महेशान शूलिन् जटाजूटधारिन् |
त्वमेको जगद्व्यापको विश्र्वरूप: - प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूपम् ||
Shivakanta Shambho Shashankardhamaule
Maheshana Shulin Jatajootadharin
Tvameko Jagadvyapako Vishwarupah
Prasida Prasida Prabho Purnarupam (4)
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं - निरीहं निराकारं ओम्कारवेद्यम् |
यतो जायते पाल्यते येन विश्र्वम् - तमीशं भजे लीयते यत्र विश्र्वम् ||
Paratmanamekam Jagadbijamadyam
Nireeham Nirakaramomkaravedyam
Yato Jayate Palyate Yena Vishwam
Tamisham Bhaje Leeyate Yatra Vishwam (5)
न भूमिर्न चापो न वह्निर्न वायु - र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा |
न चोष्णं न शीतं न देशो न वेषो - न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ||
Na Bhumirna Chapo Na Vahnirna Vayur
Na Chakashamaste Na Tandra Na Nidra
Na Choshnam Na Shitam Na Desho Na Vesho
Na Yasyasti Murtistrimurtim Tamide (6)
अजं शाश्र्वतम् कारणं कारणानां - शिवं केवलं भासकं भासकानाम् |
तुरीयं तमः पारमाद्यन्तहीनम् - प्रपद्ये परम् पावनं द्वैतहीनम् ||
Ajam Shashwatam Karanam Karananam
Shivam Kevalam Bhasakam Bhasakanam
Turiyam Tamah Paramadyantahinam
Prapadye Param Pavanam Dvitahinam (7)
नमस्ते नमस्ते विभो विश्र्वमूर्ते - नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते |
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ||
Namaste Namaste Vibho Vishwamurte
Namaste Namaste Chidanandamurte
Namaste Namaste Tapoyogagamya
Namaste Namaste Shrutigyanagamya (8)
प्रभो शूलपाणे विभो विश्र्वनाथ-महादेव शम्भो महेश त्रिनेत्र |
शिवाकन्त शान्त स्मरारे पुरारे - त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्यः ||
Prabho Shulapane Vibho Vishwanatha
Mahadeva Shambho Mahesha Trinetra
Shivakanta Shanta Smarare Purare
Tvadanyo Varenyo Na Manyo Na Ganyah (9)
शम्भो महेश करुणामय शूलपाणे - गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन् |
काशीपते करुणया जगदेतदेक - स्त्वं हंसि पासि विदधासि महेश्र्वरोऽसि ||
Shambho Mahesha Karunamaya Shulapane
Gauripate Pashupate Pashupashanashin
Kashipate Karunaya Jagadetadeka
Stvam Hamsi Pasi Vidadhasi Maheshwaro'si (10)
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे - त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्र्वनाथ |
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश - लिङ्गात्मके हर चराचरविश्र्वरूपिन् ||
Tvatto Jagadbhavati Deva Bhava Smarare
Tvayyeva Tishthati Jaganmruda Vishwanatha
Tvayyeva Gacchati Layam Jagadetadisha
Lingatmake Hara Characharavishwarupin (10)
इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतो वेदसारशिवस्तव: सम्पूर्णम्।
शिव वेदसारशिवस्तोत्रम् का हिंदी अर्थ – Vedasara Shiva Stotram Meaning in Hindi
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जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पाप का ध्वंस करनेवाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराज का चर्मपहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूट में श्रीगंगा जी खेल रहीं हैं उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हूँ (1)
चन्द्र, सूर्य और अग्नि तीनों जिनके नेत्र हैं उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देव-दुःखदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूति-भूषण, नित्यानन्द स्वरूप, पञ्चमुख भग्वानश्रीमहादेवजी की मैं स्तुति करता हूँ (2)
जो कैलाशनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ है॔, बैलपर चढे़ हुऐ हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर पे भस्म लगाये हुऐ है और श्रीपार्वती जी जिनकी अर्धांगिनि हैं, उन पञ्चमुख महादेवजी को मैं भजता हूँ (3)
हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधारिन ! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत में व्यापक हैं । पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये (4)
जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्रणवद्वारा जानने योग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभु को मैं भजता हूँ ॥(5)
जो न पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश हैं, न तन्द्रा हैं, न निद्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं, तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूँ (6)
जो अजन्मा हैं, नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं, प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रयसे विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं उन परम-पावन अद्वैत-स्वरूप को मैं प्रणाम करता हूँ (7)
हे विश्वमूर्ते ! हे विभो ! आपको नमस्कार है नमस्कार है| हे चिदानन्दमूर्ते ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । हे तप तथा योगसे प्राप्तव्य प्रभो ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है । वेदवैद्य भगवन ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है (8)
हे प्रभो ! हे त्रिशूलपाणे ! हे विभो ! हे विश्वनाथ ! हे महादेव ! हे शम्भो ! हे महेश्वर ! हे त्रिनेत्र ! हे पार्वतीप्राणवल्लभ ! हे शान्त ! हे कामारे ! हे त्रिपुरारे ! तुम्हारे अतिरिक्त न कोई श्रेष्ठ है, न माननीय है और न गणनीय है ॥ 9(9)
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