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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

कर्म और फल सिद्धान्त

कर्म और फल सिद्धान्त



कर्म के रहस्य को समझना अत्यंत कठिन कार्य है? कोई भी यह नहीं समझ सकता कि किस प्रकार के कर्म का फल कैसे और कब मिलता हे | यही कारण है कि गीता में कहा गया हे की कर्म की गति गहरी है। कभी-कभी किसी व्यक्ति को इस जीवन में कर्म का फल मिलता है, और कभी-कभी उसे दूसरे जीवन फल मिलता है |
इस बारे में प्रसिद्ध भक्त श्री सदन के जीवन का दृष्टांत लेते हे | जिससे कर्म की गति को समझने में आसानी हो जाये
भक्त सदन एक बार श्री जगन्नाथपुरी की यात्रा  के लिए बाहर निकले थे। वह एक भक्त थे और चलते चलते रात्रि हो गयी तो रास्ते में एक गांव आया। वहां एक गांव में उन्होंने रहने के लिए सहर माँगा और उस घर में रात बिताई | सदन कसाई दिखने में रूपवान थे इसलिए घर में रहने वाली एक महिला वह सदन भक्त पर अधिक मोहित हो गयी और उसे बहकाया । जब महिला का पति रात में सो गया, तब वह महिला सदन कसाई के तहखाने में गयी और कहा, 'मैं तुम्हारे रूप से मोहित हो गयी हु ।' आप मेरे प्यार को स्वीकार करो और मेरे साथ भोग (कामवासना) करके मुझे खुशी दो |

सदन भक्त ने उनकी मांग को खारिज कर दिया लेकिन वह महिला जिद करने लगी | सदन भक्त ने फिरभी मना किया और कहा में तो एक भक्त हु और ऐसा दुष्कार्य कभी सोच भी नहीं सकता वह महिला को लगा की ये सदन भक्त उनके पति से डर रहा हे | वह महिला सदन भक्त को किसी भी तरह पाना चाहती थी |  इसलिए वह घर में जाकर थोड़ी देर बाद अपने पति के सिर काट कर आई। ये सब दखकर उस भक्त को  बहुत ही दुख हुआ | वह महिला ने कहा कि आप मेरे पति से डर रहे हैं , इसलिए मैंने अब उन्हें रास्ते से हटा दिया है। अब आप बिना किसी झिझक के मेरी इच्छा(कामवासना) पूरी  कर सकते हैं।

उस स्त्री की भयंकरता देखकर सदन भक्त का शरीर कांपने लगा और विलाप करने लगा की यह स्त्री कितनी निर्दयी हे जिन्होंने कामवासने के लिए अपने पति के मस्तक काटने में तनिक भी संकोच ना हुआ | फिरभी सदन भक्त अपने निर्णय पर अटल रहे और उन्हें मना कर दिया | तब वे स्त्री ने एक नई चाल खेली | वो स्त्री जोर शोर से रोने लगी उनकी आवाज़ सुनकर गावं के कुछ लोग उनके घर में आ गए तब वे स्त्री ने कहा की इस आदमी ने मेरे पति को मार डाला | हमने उस पर दया करके अपने घर में रहने दिया | लेकिन ये आदमी इतना क्रूर था हमे क्या पता | मेरे पति के सोने के बाद इस आदमी ने मुझे छेड़ा और जब मेने मना किया तो मेरे पति का सर काट दिया | ये आदमी ढोंगी और खुनी हे उसे कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए ऐसा कहकर वो स्त्री रोने लगी

तब सदन भक्त को गावं वालोने पकड़ लिया और दूसरे दिन उसे पंचायत के सामने पेश किया | पंचायत के मुखिया उस स्त्री की सारी बात सुनकर यह निर्णय लिया की इस आदमी का एक हाथ कांत दिया जाये ये सब देखकर भी सदन भक्त ने उसका विरोध तक नहीं किया और सजा का स्वीकार किया | उनका एक हाथ कांत दिया और उन्हें छोड़ दिया गया | तब भी वह सदन भक्त ने भगवान का नाम लेकर फिरसे अपनी यात्रा शुरू की और जगन्नाथ पहुंचकर ईश्वर को प्रणाम किया और कहा की हे ईश्वर मेने तो इस जीवन में आपका भजन कीर्तन ही किया हे और सभी का भला ही चाहा हे | और इस जीवन में मेने ऐसा कोई भी पाप नहीं किया हे | मेने तो निश्वार्थ ही ईश्वर भक्ति की हे | फिरभी मुझे इस प्रकार की सजा का क्या कारन हे ?

ईश्वर ने उन्हें कहा कर्म का नियम अटल हे ( जो जैसा कर्म कर्ता हे उनको वैसा ही फल मिलता हे ) | मनुष्य उसे समझने में असमर्थ हे इसीलिए आपको ऐसी शंका हो रही हे | हे सदन भक्त आपने इस जन्म में मेरी भक्ति ही की हे लेकिन इससे पहले जन्म में आपने बहुत बड़ा अपराध किया था जिसके परिणाम स्वरुप आपको ये दंड मिला हे | पूर्व जन्म में आप के घर के पास एक गाय असहाय दशा में आयी थी जिनके पीछे एक कसाई था जब वो आपके पास आया तब आपने उस गाय को बचाने की जगह अपने ही हाथो से उस गाय को कसाई के हवाले कर दी थी | उस कसाई ने गाय को मार डाला था | अब इस जन्म में वो स्त्री को गाय का रूप मिला था और कसाई को उनके पति का रूप मिला था | इसीलिए वो स्त्री ने अपने पति का सर काट दिया जिस प्रकार उन्होंने अगले जन्म में गाय को मर दिया था | और जिस हाथ से आपने गाय को उस कसाई के हवाले किया था उस हाथ को इस जन्म में कांत दिया गया | और हिसाब बराबर हुआ यही कर्म का विधान हे और उसमे ईश्वर भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते |

कर्म की गति बहुत ही गहन हे | इस संसार में कई लोग अचछा शरीर लेके जन्मते हे तो कई लोग खराब यानि
पहले से ही कई प्रकार के रोग के साथ तो कोई बहरा , मूंगा और अपंग वो सब अपने कर्म पर आधीन हे | हमे जीवन में जो पीड़ा और दुःख मिलते हे तो हम ईश्वर को कोसते हे | ईश्वर को कोसने की जगह क्या हम अपने कर्म को शुद्ध नहीं कर सकते ? पूर्व जन्म के कर्मो को तो हम नहीं बदल सकते लेकिन इस जन्म में अपने कर्मो को तो जरूर बदल सकते हे और अच्छे कर्म तो कर ही सकते हे

हमें र्इश्वर के अस्तित्व और कर्मफल के सिद्धांत को सदैव ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम इससे आँखें फेरने का प्रयास करेंगे तो केवल स्वंय को ही धोखा देते रहेंगे। फिर हम न तो स्वंय को पहचान पाएंगे और न धर्म के वास्ततिक स्वरूप को।

1 टिप्पणी:

  1. here is a one short story of karma or karma ka phal or karam ka phal.
    in this story you will found that how our karma change our future.
    if you want to know action of our karma you can go through with Karma ka phal
    https://www.youtube.com/watch?v=Etutqmcj3Do

    Many times, we think we are right as i want something from god, and we do many many manipulations in our life, but at that time, we never think about its revert or which kind of turn our life takes.
    this story tells about our karma.

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