श्री कृष्ण नामकरण - Shree Krishna Ramanand sagar
ऋषि गर्ग श्री कृष्ण का नामकरण करते हैं। नामकरण संस्कार की बाद जब कंस को पता चलता है की नंदराय ने अपने पुत्र का नाम कृष्ण रख दिया है तो वह अपने गुप्तचरों से ये पूछता है की कृष्ण का नामकरण किसने किया गुरु शांडिल्य ने या फिर ऋषि गर्ग ने जिसके बारे में गुप्तचरों को कुछ पता नहीं होता है।
कंस के सलाहकार तर्क वितरक करते हुए शंका जताते हैं की श्री कृष्ण किसका पुत्र है नंद का या वासुदेव का। चाणुर वासुदेव से इस बारे में सवाल करने के लिए बुलाने की बात कंस से कहता है। कंस अपने सेनिको को वासुदेव को लेने के लिए भेजता है।
लेकिन वासुदेव उस वक्त ऋषि गर्ग के आश्रम में उनसे अपने पुत्र के बारे में जानने के लिए गए हुए थे। ऋषि शांडिल्य वासुदेव को बताते हैं की देवकी का आठवाँ पुत्र कृष्ण ही हैं क्योंकि जब वासुदेव श्री कृष्ण के जनम के बाद भगवती योग माया की प्रेरणा से कृष्ण को नंदराय की पुत्री से बदल कर ले आए थे जिसके बारे में उन्हें कुछ भी बात याद नहीं थी।
वासुदेव इस याद को वापस स्मृति में डालने के लिए रिशि शांडिल्य से विनीति करते हैं, जिस पर रिशि शांडिल्य उनकी उस वक्त की स्मृति वापस उन्हें दे देते हैं वासुदेव इन सब बातों को याद करके बहुत सुकून पाते हैं। जब वासुदेव वापस अपने महल लौटते हैं तो उन्हें कंस के सैनिक कंस के पास ले जाते हैं।
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