हिरण्यकश्यप का भगवान नरसिंह द्वारा वध - प्रलहाद की विष्णु भक्ति
हिरण्यकश्यप अपने गुरु के पास जाता है और उनसे देवताओं से युध करने के लिए शक्ति पाने का रास्ता पूछता है तो उसे उसका गुरु तपस्या करने की आज्ञा देता है।
हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करता है और ब्रह्मा जी उससे प्रसन्न होकर उसे वरदान देते हैं। हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी से वरदान के रूप में वरदान माँगता है की उसे ना कोई मनुष्य ना पशु ना राक्षस मार सके, ना दिन में ना रात में मार सके, ना ही घर के अंदर ना ही घर के बाहर, ना ही अस्त्र से और ना ही शास्त्र से मार सके।
ब्रह्मा जी उसे वरदान दे देते हैं। हिरण्यकश्यप स्वर्ग पर हमला कर क़ब्ज़ा कर लेता है, वह सभी पृथ्वी वसियों को और साधु संतो को खुद को भगवान मानने के लिए प्रताड़ित करने लगा। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रलहाद ही एक ऐसा था जो विष्णु भगत था और 5 वर्ष की आयु से ही विष्णु भगवान की पूजा में लीन हो गया था जब हिरण्यकश्यप को पता चला तो उसने उसे बहुत समझाया पर जब वह उसे नहीं समझा पाया तो उसने उसे दंडित करना चाहा
परंतु विष्णु भगवान उसकी रक्षा करते थे। जब हिरण्यकश्यप प्रलहाद को मारने में असमर्थ हो रहा था तो उसकी बहन होलिका हिरण्यकश्यप को प्रलहाद के साथ आग में बैठने की योजना बताती है क्योंकि वह अग्नि से जल नहीं सकती थी क्योंकि ब्रह्मा जी का वरदान था। लेकिन विष्णु भगवान का नाम जपते हुए प्रलहाद को अग्नि कुछ नहीं करती लेकिन होलकी जलकर ख़ाक हो जाती है।
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